पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा कौशल रोजगार निगम (HKRN) की भर्ती प्रक्रिया में सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के आधार पर अंक देने की नीति पर रोक लगा दी है। 21 नवंबर, 2024 को जारी इस ऐतिहासिक आदेश में अदालत ने निगम की उस नीति को असंवैधानिक करार दिया, जिसमें उम्मीदवारों को पारिवारिक आय और अनुभव के आधार पर अतिरिक्त अंक दिए जाते थे। यह निर्णय 2022 से लागू राज्य की अस्थायी भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित करता है और रोजगार के क्षेत्र में समानता और पारदर्शिता की ओर एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
हाईकोर्ट ने माना कि अनुभव और सामाजिक-आर्थिक आधार पर अंक देने की नीति नए उम्मीदवारों के साथ अन्याय करती है और पहले से काम कर रहे कर्मचारियों को अनुचित लाभ प्रदान करती है। अदालत ने हरियाणा सरकार को निर्देश दिया है कि वह निगम की भर्ती नीति में आवश्यक बदलाव करे ताकि भविष्य की भर्तियां पूरी तरह से निष्पक्ष और मेरिट के आधार पर की जा सकें।
हाईकोर्ट के आदेश का असर
हाईकोर्ट के इस फैसले का असर हरियाणा के भर्ती ढांचे पर व्यापक रूप से पड़ने वाला है। इस निर्णय के बाद लगभग 1,100 अनुबंध पर काम कर रहे कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में आ सकती हैं, जो वर्तमान नीति के तहत लाभान्वित हुए थे। अदालत ने सरकार को नए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए कहा है, जो 31 मई, 2025 तक लागू किए जाएंगे। अब हरियाणा कौशल रोजगार निगम के तहत सभी भर्तियां केवल योग्यता के आधार पर की जाएंगी, जिससे सामाजिक-आर्थिक मानदंड का प्रभाव खत्म हो जाएगा।
यह आदेश राज्य में अस्थायी नौकरियों की पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े करता है। अदालत का यह निर्णय उम्मीदवारों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है और इस बात को सुनिश्चित करता है कि चयन प्रक्रिया में कोई भेदभाव न हो।
भर्ती नीति में सुधार की जरूरत
हाईकोर्ट के आदेश ने राज्य की भर्ती नीतियों में बड़े सुधारों की जरूरत को उजागर किया है। हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल को निर्देश दिया गया है कि वे निगम की चयन प्रक्रिया में बदलाव करें और नए मानदंड लागू करें। यह बदलाव ऐसे होने चाहिए जो सभी उम्मीदवारों को बिना किसी भेदभाव के बराबरी का मौका दें।
यह आदेश राज्य की रोजगार नीतियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता की बढ़ती मांग के बीच आया है। अनुभव और सामाजिक-आर्थिक आधार पर अंक देने की नीति को समाप्त कर, अदालत ने यह सुनिश्चित किया है कि सभी उम्मीदवारों को रोजगार के समान अवसर मिले। यह निर्णय राज्य के संविधानिक सिद्धांतों के अनुरूप भी है।
HKRN के तहत रोजगार का भविष्य
हाईकोर्ट के फैसले से पारदर्शिता तो बढ़ेगी, लेकिन अनुबंध पर काम कर रहे कर्मचारियों के लिए अनिश्चितता भी बढ़ गई है। जिन कर्मचारियों की नौकरी सामाजिक-आर्थिक मानदंड पर आधारित थी, वे अब असुरक्षित स्थिति में हैं। सरकार के सामने इन कर्मचारियों को समायोजित करने और नई निष्पक्ष भर्ती नीति बनाने की दोहरी चुनौती है।
भविष्य में हरियाणा सरकार का ध्यान मेरिटोक्रेसी के साथ-साथ समावेशिता पर भी होगा। HKRN की नीतियों में बदलाव अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल पेश कर सकता है और यह सुनिश्चित करेगा कि भर्ती प्रक्रिया संविधानिक मूल्यों के अनुरूप हो।